धूमधाम से हुआ बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव, काशीवासी बनें घराती-बरती, 357 साल की परंपरा जा हुआ निर्वहन

 

– बाबा की पंचबदन प्रतिमा का हुआ भव्य साजो श्रृंगार
– जलान्स समूह ने निभाई माता गौरा के परिवारीजनों की भूमिका
– डमरू दल के गगनभेदी वाद्य विंद ने किया स्वागत, देर रात तक चलता रहा मंगलगीत

वाराणसी से संदीप त्रिपाठी की रिपोर्ट:- बसन्त पंचमी के बसंती वातावरण पर एक बार फिर काशी शिवमयी हो गई। मौका था बाबा विश्वनाथ के तिलकोत्सव का। इसके साथ ही बाबा का लगन हो गया। जिसकी खुमारी शिवरात्रि पर बाबा के बारात और विवाह तथा रंगभरी एकादशी पर होने वाले माता गौरा के गौने तक काशीवासियों पर चढ़ गई। बसंत पंचमी की तिथि पर मंगलवार को बाबा विश्वनाथ के तिलक का उत्सव टेढ़ीनीम स्थित विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर हुआ। भोर में चार से साढे चार बजे तक बाबा विश्वनाथ की पंचबदन रजत मूर्ति की मंगला आरती उतारी गई।
बसंत पंचमी की तिथि पर मंगलवार को बाबा विश्वनाथ के तिलक का उत्सव टेढ़ीनीम स्थित विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर हुआ। भोर में चार से साढे चार बजे तक बाबा विश्वनाथ की पंचबदन रजत मूर्ति की मंगला आरती उतारी गई। सुबह छह बजे से आठ बजे तक ब्राह्मणों द्वारा चारों वेदों की ऋचाओं के पाठ के साथ बाबा का दुग्धाभिषेक किया गया।

दोपहर में बाबा विश्वनाथ की पंचबदन प्रतिभा को अर्चकों ने पंचगव्य स्नान कराया और वैदिक रीति रिवाजों के साथ तिलकोत्‍सव का आयोजन शुरू किया गया। वहीं सुबह 8.15 बजे से बाबा को फलाहार का भोग अर्पित किया गया, उसके उपरांत पांच वैदिक ब्राह्मणों ने पांच प्रकार के फलों के रस से 8.30 से 11.30 बजे तक रुद्राभिषेक कराया। पूर्वाह्न 11.45 बजे पुन: बाबा को स्नान कराया गया। दोपहर 12 बजे से 12.30 बजे तक मध्याह्न भोग अर्पण एवं आरती की गई। 12.45 से दोपहर ढाई बजे तक महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाये गए।

02:30 से 04:45 बजे तक शृंगार के लिए कक्ष के पट बंद कर दिए गए। इस बीच संजीव रत्न मिश्र ने बाबा का दूल्हा के रूप में शृंगार किया। 04:45 से 05:00 बजे तक संध्या आरती एवं भोग के बाद सायं पांच बजे से भक्तों के दर्शन के लिए पट खोल दिए गए। भक्तों ने बाबा का दूल्हा स्वरूप में दर्शन किया। सायं सात बजे जालान परिवार की अगुवाई में तिलक की रस्म पूरी की गई। शहनाई की मंगल ध्वनि और डमरुओं के निनाद के बीच तिलकोत्सव की बधइया यात्रा निकली। सात थाल में तिलक की सामग्री लेकर जालान परिवार इस शोभायात्रा का हिस्सा बने। इन थालों में बाबा के लिए वर के लिए वस्त्र, सोने की चेन, सोने की गिन्नी, चांदी के नारियल सजा कर रखे गए थे। लोकाचार के अनुसार दूल्हे के लिए घड़ी और कलम के सेट भी एक थाल में सजा कर रखे गए थे।

इस बाबत महंत डॉक्टर कुलपति तिवारी ने बताया कि जब मां पार्वती ने बाबा विश्वनाथ को वर के रूप में चुन लिया तो यह तय किया गया कि अब तिलकोत्सव भी होना चाहिए। इसके लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि तय की गई। माना गया कि एक तो आज का दिन माता सरस्वती के पूजन का दिन है। होलिका के लिए आज ही पहली लकडी गाड़ी जाती है। आज से ही नवसंवत्सर की प्रतीक्षा शुरू हो जाती है। ऐसे में इससे बढ़िया दिन हो नहीं सकता काशीपुराधिपति के तिलकोत्सव का। सो करीब 350 साल से यह परंपरा चली आ रही है। उन्होंने बताया कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को तिलकोत्सव, फिर फाल्गुन कृष्ण पक्ष में विवाह उसके बाद फिर शुक्ल पक्ष में एकादशी को गौना होता है। बाबा के विवाह के निमित्त पक्ष का ध्यान खास है।

उऩ्होंने बताया कि बाबा की दो प्रतिमा है एक चल जो मेरे पास रहती है और दूसरी अचल प्रतिमा जो बाबा दरबार में है। चल प्रतिमा वर्ष में तीन बार ही मेरे आवास से सज धज कर निकालती है, एक सावन पूर्णिमा को दूसरे महाशिवरात्रि को फिर रंग भरी एकादशी को। वसंत पंचमी के दिन आवास पर ही तिलकोत्सव की रस्म पूरी की जाती है। बाबा का श्रृंगार कर शाम चार बजे तिलकोत्सव किया गया। दक्ष प्रजापति के रूप में वह खुद बैठ कर बाबा के तिलकोत्सव की रस्म निभाते दिखे। लोकमान्यताओं के अनुसार शिवविवाह के पूर्व वसंत पंचमी के दिन दक्ष प्रजापती ने भगवान शंकर का तिलकोत्सव किया था। बाबा की रजत प्रतिमा का विजयायुक्त ठंडई, पंचमेवा, फल व मिष्ठान्न का भोग लगाया गया। उसके बाद आरती हुई। बाबा की इस रजत प्रतिमा की विशेष पूजा महाशिवरात्री तक चलती रहेगी।

शाम को ढोलक, झाल,मजीरा संग गीत गवनई का मंगल गीत हुआ। शिवरात्रि पर शिव विवाह के उपरांत रंगभरी एकादशी पर माता उमा के साथ बाबा का गौना उत्सव मनाया जायगा और बाबा की रजत पालकी के दर्शन होगें। उन्होंने बतया कि अब महाशिवरात्रि पर बाबा का विवाहोत्सव मनाया जाएगा।

बता दें कि श्री काशी विश्वनाथ का विवाह भी कौमी एकता की मिशाल है। इसमें पार्वती हिंदू तो शिव मुस्लिम संप्रदाय से बनते हैं। बारात महामृत्युंजय महादेव से निकलती है और दशाश्वमेध घाट से पहले विश्वनाथ गली के समीप स्थित गुरु बृहस्पति मंदिर के समीप सजता है विवाह मंडप। वही होती है शादी। बारात में परंपरागत रूप से हर तरह के लोग व विभिन्न वेषधारी मौजूद रहते हैं जैसा कि लोकमान्यता में कहा गया है कि बाबा के विवाह में भूत-प्रेत, फकीर सभी शामिल हुए थे वह परंपरा आज भी काशी में पूरी की जाती है।

इसके पूर्व काशी में बाबा विश्वनाथ का आंगन तिलकोत्सव की तैयारियों के लिए सुबह से ही सजने लगा था। बाबा के तिलकहरू शाम को शुभ मुहूर्त में बाबा का तिलक चढ़ाने पहुंचें। 357 साल से चली आ रही बाबा विश्वनाथ के तिलकोत्सव की परंपरा में काशी की जनता ही बराती और घराती की भूमिका में शामिल हुई।

 

विश्वनाथ मंदिर से महंत आवास लाई गई बाबा की पंचबदन मूर्ति

सोमवार को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के अपर मुख्य कार्यपालक निखिलेश मिश्रा, पुनीत धवन और सुरक्षा अधिकारियों की मौजूदगी में बाबा की पंचबदन रजन मूर्ति पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के पुत्र वाचस्पति तिवारी एवं संजीवरतन मिश्र को सौंपी गईं। मंदिर के अर्चकों ने विश्वनाथ मंदिर के गणनाकक्ष में पूजन किया गया। इसके उपरांत मंदिर के अर्चकों ने डमरुओं की निनाद के साथ मूर्ति टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास तक पहुंचाई।

महंत ने किया था मूर्तियों की वापसी के लिए अनशन

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने मूर्तियों की वापसी के लिए अनशन किया था। यह पंचबदन रजत प्रतिमा उन्हीं मूर्तियों में से एक है। मंडलायुक्त ने उन्हें 15 दिनों के अदर समस्या के समाधान का आश्वासन भी दिया था।


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