
बुरी आदतों को सुधारना ही भगवान का भजन है – जीयर स्वामी।
श्रद्धालुओं की जनसैलाब उमड़ने से यज्ञस्थल रौनक के बीच पूरा माहौल भक्तिमय
राजकुमार वर्मा/जगदीशपुर:-जगदीशपुर (भोजपुर)। जीयर स्वामी जी महाराज की एक झलक पाने तथा उनका दिव्य उपदेश व प्रवचन सुनने को बच्चे बुड्ढे महिला-पुरुष भक्तगण वायकूल है। आयोजित लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का सातवे दिन मंगलवार को अहले सुबह महाआरती के साथ शुरू हुआ। जिसमें काफी संख्या में बढ़-चढ़कर महिला-पुरुष श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्र के जुटने से श्रद्धालुओं की जनसैलाब उमड़ने से यज्ञस्थल रौनक के बीच पूरा माहौल भक्तिमय में तब्दील हो जा रहा है। यज्ञ में शामिल होने वाले हर लोग अपने आप को भाग्यशाली समझ रहे हैं। बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश समेत अन्य जगहों के करीब 70 हजार श्रद्धालुओं ने यज्ञ मंडप का परिक्रमा, माता रानी का पूजा अर्चना व कई अध्यात्मिक प्रसंगों को सुनकर भक्त भावविभोर हो रहे हैं। यज्ञ समिति ने श्रद्धालुओं के लिए हर तरह की व्यवस्था की है ताकि श्रद्धालुओं का किसी तरह का परेशानी ना हो।
मोक्ष का सरल और सहज साधन मन है
जीयर स्वामी ने अपने प्रवचन में भक्तगण से कहा की
माता देवहुति ने अपने पुत्र भगवान कपिलदेव जी से पूछा कि आत्मोद्धार कैसे हो सकता है। उन्होंने बताया कि आत्मोद्धार का सबसे सरल तथा सहज उपाय यह है कि मन को जगत् के साथ साथ जगदीश में भी जोड़िए। मन को केवल जगदीश में जोड़ना संभव नही है। उसी प्रकार से जगदीश में यदि संबंध जोड़ लेते हैं तो सही मायने में हमें जगत का संबंध पास कर लेगा। जगत् का व्यवहार हमें पास कर देगा। अगर जगदीश से संबंध में पास नही करते हैं तो व्यवहार से जगत् से पास होने के बाद भी फेल माने जाएंगे। इसलिए जगत् की व्यवस्था में रहें लेकिन जगदीश से संबध जोड़ कर रहें। कहीं किसी कारण से जाने अनजाने में बुरी आदत जो हो उसको त्यागीए। हरपल, हर क्षण उसके जीवन का कार्य हमारा भजन बन जाएगा। श्रीमद्भागवत महापुराण में बताया गया है बंधन और मोक्ष का कारण मन है। यदि जगदीश में फंसा हुआ है तो मोक्ष है। यदि मन कहीं जगत् में फंसा हुआ है तो बंधन है। मोक्ष का सरल और सहज साधन मन है। मन को अपने आप में दुनिया से समेट लिए तो ठीक है। यदि मन को दुनिया में लगा दिए तो कहीं न कहीं उलझन में फंसना जरूरी है।
सत्य ही नारायण हैं, नारायण ही सत्य हैं।
भक्ति को पुष्ट करने के लिए 15 साधन बताया गया है। पहला यम नियमादि का पालन करना। वाणी भी सत्य होना चाहिए, भोजन भी सत्य होना चाहिए, व्यवहार भी सत्य होना चाहिए। हमारी धारणा, ध्यान भी सत् होना चाहिए, इसी का नाम सत्य है। क्योंकि नारायण ही सत्य हैं, सत्य ही नारायण हैं। अगर नारायण से हमारा प्रेम नही हुआ तो हमारे द्वारा जो सत्य बोला गया है सत्य बोलने पर भी उसका फल प्राप्त नही होगा।