काशी की जगन्नाथ यात्रा
काशी वाराणसी से तन्नू वर्मा की रिपोर्ट
काशी की रथयात्रा- काशी में ऐतिहासिक रथयात्रा मेला काशी के उत्सव श्रृंखला की शुरुआत माना जाता है। पखवाड़े भर स्वास्थ्य कारणों से विश्राम के बाद भगवान_जगन्नाथ कुटुंब के साथ रथ पर सवार होकर निकलते हैं तो दर्शन को करने को भक्त उमड़ पड़ती है। इसके साथ ही काशी की ऐतिहासिक तीन दिवसीय रथयात्रा परंपरा निर्वहन होता है।

अस्सी स्थित तीन सौ साल पुराने जगन्नाथ मंदिर से डोली में सवार होकर भगवान जगन्नाथ कुटुंब सहित रथयात्रा स्थित बेनीराम बाग पहुंचते हैं। जहां देव विग्रहों को परंपरा के अनुसार अष्टकोणीय रथ पर मध्यरात्रि में विराजमान कराया जाता है। श्रृंगार के क्रम में भगवना जगन्नाथ भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा को पीतांबर धारण कराया जाता है। भोर में चार बजे पुजारी द्वारा ने देव विग्रहों का पूजन-अनुष्ठान किया जाता है।

पूजन और मंगला आरती के बाद दर्शन के लिए कपाट खुल जाता है। दर्शन-पूजन के बाद रथ को खींच भक्त निहाल हो उठते हैं। पूरे दिन दर्शन-पूजन का क्रम चलता रहता है। बता दें कि पुरी के बाद भोले की नगरी काशी में भी बड़े पैमाने पर रथयात्रा उत्सव मनाया जाता है। नए साल में उत्सवों की शुरुआत ही लक्खा मेलों में शुमार रथयात्रा से होती है।

जगन्नाथ_मंदिर- काशी के असि क्षेत्र में जगन्नाथ मंदिर लगभग 300 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। यह मंदिर उड़ीसा के मुख्य जगन्नाथ मंदिर सा प्रतीत होता है मंदिर की स्थापत्य कला सहित कई अन्य समानताएं मुख्य जगन्नाथ मंदिर जैसी हैं।

इस मंदिर के चार द्वार बनाए गए हैं। पहले द्वार से मंदिर की दूरी करीब 300 मीटर से ज्यादा है सभी द्वार एक सीध में है पहले द्वार से ही ध्यान से देखने पर मंदिर में स्थापित जगत जगन्नाथ जी सुभद्रा एवं बलराम की मूर्ति दिखाई देती है। मंदिर से पहले द्वार पर एक छोटा सा कुंड भी है।