कोरोना का असर: रमजान में इबादत से इफ्तारी तक का बदला माहौल

न मस्जिद जाने की जल्दीबाजी न ही इफ्तार पहुंचाने का बच्चों में जोश

रमजान में खानपान के लिए बाजारों से भी रौनक है गायब

रोजेदारों के किचन में पकने वाले व्यंजनों की खुशबू लोगों को खींच ले जाती

संवाददाता सूरज कुमार राठी/जगदीशपुर। ऐतिहासिक धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी जगदीशपुर रमजान के पवित्र माह में गुलजार रहता था,लेकिन कोरोना संक्रमण व लॉक डाउन के चलते इस बार रमजान में इबादत से लेकर इफ्तार तक का स्वरूप बदल गया है।रोजेदारों में न तो मस्जिद जाने की जल्दीबाजी है व न ही मस्जिदों में इफ्तार पहुंचाने का बच्चों में जोश ही दिख रहा है। रमजान के दौरान खानपान के लिए नगर से रौनक भी गायब है। इन दिनों जरूरी सामानों कि कुछ दुकानों को छोड़कर सबकुछ बंद है। रमजान में रोजेदारों के लिए खानपान के लिए खास व्यंजनों का जरूरत पड़ती है, लेकिन लॉकडाउन के कारण नहीं मिल पा रहा है।रोजेदारों के किचन में पकने वाले वेज और नॉनवेज व्यंजनों की खुशबू लोगों को खींच ले जाती है।

बाकरखानी, लच्छा, तंदूरी पराठा, कुलचे नहारी और कबाब जैसी परंपरिक डिश जैसे व्यंजन भी रमजान में खूब पसंद किए जाते हैं।गिलाफी कुलचे, पेशावरी रोटी, खीर-फिरीनी व मुर्गे मीट की भी मांग कम नहीं रहती।कबाब नान जैसी व्यंजनों का क्या कहना है।लेकिन, इस महामारी व लॉक डाउन में कुछ ही चीजें उपलब्ध हो पा रही है। गौरतलब हो कि इससे पहले बाजारों में अकीदतमंद पानी, सूप,सलाद, अंकुरित दाल व चना, दूध, फलों का जूस, फल आदि खाते पीते दिखते थे। बाजारों में सहरी के लिए दूधफेनी,सेवई,खजूर,मिठाई हरी सब्जियों, फलों,किस्म-किस्म की मिठाइयों से दुकाने सजी रहती थी। इनमें से एक गुलाब जामुन और खजूर खास है। लेकिन,अब मुश्किल हो रहा है।

रूह और दिल को पवित्र करता है रोजा

मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक रमजान के महीने में हर मुसलमान अपने मन और शरीर को पवित्र रखता है। रमजान में बुरी आदतों पर काबू करके अच्छे विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है। वह हर शख्स के साथ विनम्रता का व्यवहार करता है। रोजा हर उस शख्स पर फर्ज है जो बालिग होता है। जो शख्स जान बूझकर रोजा नहीं रखता है वह गुनाहगार होता है। अल्लाह के घर उसे हिसाब देना पड़ेगा।

बंद नही पड़ी होती मस्जिद तो नन्हे रोजेदार के हौसले बड़े को कर देते हैरान, मिलती हैं दुआएं

लॉकडाउन व कोरोना महामारी के चलते मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं।ऐसे में
इन दिनों मस्जिदों में नन्हे नमाजियों की तादाद नही दिखाई दे रही है। इससे पहले
नन्हे नमाजियों की तादाद मस्जिदों में खूब दिखाई दे रही थी।सिर पर टोपियां संभाले जब इन मासूमों के कदम पड़ते थे, तो मस्जिद की रौनक बढ़ जाती थी। रोजा की हालत में इनके चेहरे की मासूमियत देखते बनती है। इन छोटों के हौसले देख बड़े भी हैरान रहते हैं। हर कोई इन्हें दुआएं देता है।


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