
शिक्षा में सुधार के लिए शिक्षकों की दशा सुधारना जरूरी : डॉ. अभिराम सिंह
तरारी।देश की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था के तहत हमारी शिक्षा प्रणाली बेहद सुदृढ़ और मजबूत रही है, लेकिन समय के साथ हमारी शिक्षा प्रणाली बदलती चली गई और इस बदलाव से शिक्षा एवं शिक्षण संस्थानों में गर्त में पहुंचा दिया। इसका सबसे बुरा असर शिक्षक समाज पर पड़ा। शिक्षा में सुधार के लिए सबसे पहले शिक्षकों की दुर्दशा को सुधारने की जरूरत है। ये बातें बुधवार को तरारी प्रखंड के बिहटा हाई स्कूल ,पनवारी हाईस्कूल ,श्री त्रिदंडी स्वामी मानस महाविघालय समेत सरकारी हाई स्कूलों में शिक्षकों के साथ संवाद के दौरान पीपी एजुकेशनल ग्रुप, जहानाबाद के चेयरमैन एवं शिक्षाविद डॉ. अभिराम सिंह ने कहा कि शिक्षक समाज के पथप्रदर्शक और निर्माता होते हैं। वे समाज के सबसे सम्मानित सदस्य होते हैं लेकिन व्यवस्था की असफलता का सबसे खराब असर शिक्षक समाज पर ही पड़ा है। दशकों से चली आ रही शिक्षा नीति के विभिन्न प्रावधान वक्त के साथ अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। शिक्षकों के उत्थान की जिम्मेवारी उनकी नुमाइंदगी करने वाले प्रतिनिधियों को लेनी चाहिए थी, लेकिन अफसोस है कि आज तक उनके वोट से जीतकर विधान परिषद में जाने वाले प्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।
वे शिक्षकों की सुध लेना तो दूर, उनकी बात तक नहीं सुनते। बिहार में लगातार गिरती शिक्षा व्यवस्था के प्रति इन प्रतिनिधियों और सरकार की जवाबदेही बनती है। सरकार लगातार आत्मनिर्भर बिहार की बात करती है, लेकिन क्या शिक्षा में सुधार और शिक्षक के बिना यह संभव है ? आज बिहार में माध्यमिक, उच्च माध्यमिक विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विषयवार शिक्षकों, व्याख्याताओं का घोर अभाव है। ऐसी हालात में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करना बेमानी है। सरकारी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विषयवार पद सृजित किया जाना चाहिए | शिक्षकों को आपस में ही बांटकर उन्हें नियोजित और अतिथि शिक्षक, वित्त रहित शिक्षक बतलाया जाता है जो शिक्षक समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। इन्हें अलग- अलग मानदेय निर्धारित किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से न्याय संगत नहीं है। डॉ.सिंह ने कहा कि नवनियुक्त शिक्षकों के वेतन भुगतान का मामला , एरियर भुगतान का मामला, वेतन निर्धारन में गड़बड़ी आदि अनेक मुद्दों पर किसी का कोई ध्यान नहीं है। ऐसी व्यवस्था से शिक्षक कुंठित होते हैं जिसका दुष्प्रभाव समग्र शिक्षा पर पड़ता है। इसका खामियाजा समाज को कहीं न कहीं भुगतना पड़ता है। अभिराम सिंह ने कहा कि जब सरकारी एवं गैर सरकारी शिक्षण संस्थान में पठन-पठान की व्यवस्था समान है तो फिर शिक्षकों को समान काम के बदले समान काम का वेतन का प्रावधान क्यों नहीं हो सकता । ऐसी व्यवस्थाओं को तत्काल समाप्त कर नियमित करना बेहद जरूरी है। शिक्षा में व्यवसायीकरण के लिए शिक्षा तंत्र को जिम्मेवार बताते हुए कहा कि सरकारी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में सृजित पद के अनुसार शिक्षक नहीं हैं। नतीजतन शिक्षा व्यवस्था में लगातार गिरावट हो रही है जिसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी एवं अभिभावक निजी शिक्षण संस्थानों की ओर मुखातिब हो रहे हैं। निजी शिक्षण संस्थान में अच्छे शिक्षकों द्वारा शिक्षा दी जा रही है जिससे प्रतिवर्ष मेडिकल, इंजीनियरिंग एवं यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में अच्छी खासी संख्या में छात्र-छात्राएं सफलता प्राप्त कर रहे हैं। कभी ज्ञान की धरती बिहार में मगध विश्वविद्यालय की शिक्षण व्यवस्था का बोलबाला था। लेकिन आज इसका हस्र क्या है वह किसी से छिपा नहीं है | जहां स्नातक जैसे कोर्स भी तीन वर्षों की बजाय पांच वर्षों में भी पूरा नहीं हो पा रहे है। वहां व्याख्याताओं में वर्त्तमान शिक्षा व्यवस्था के प्रति घोर नाराजगी है । बिहार के शिक्षकों में सामर्थ्य है कि वे बदलाव कर सकते हैं । बिहार में लगातार गिरती शिक्षा व्यवस्था में सुधार के प्रति हम सबकी जिम्मेदारी बनती है। अगर शिक्षकों ने मुझे मौका दिया तो इन समस्याओं को सदन में उठाऊंगा ।