जिले के 2.44 लाख बच्चों को पिलाई गई ‘दो बूंद जिंदगी की’

पहले चक्र में दवा पीने से वंचित बच्चों को बी-टीम के द्वारा दी गई पोलियो की खुराक
कोरोना के संक्रमण को देखते हुये कार्यक्रम के दौरान में कोविड-19 सुरक्षा नियमों का किया गया पालन

बक्सर. जिले के पांच साल से कम उम्र के बच्चों को पोलियो से बचाने के लिये 27 जुलाई को शुरू हुआ पल्स पोलियो अभियान समाप्त हो गया। लगातार पांच दिनों तक अभियान चलाकर बच्चों को पोलियो की खुराक दी गई। इस क्रम में विशेष अभियान के तहत पहले चक्र के छूटे हुये बच्चों को बी-टीम के द्वारा पोलियो की खुराक दी गई। कोरोना संक्रमण की आशंका के बीच जिले के सभी पांच साल से कम उम्र के बच्चों को पोलियो से सुरक्षित रखने के उद्देश्य में स्वास्थ्य विभाग ने अपना पूरा प्रयास किया है। फलस्वरूप यह अभियान काफी सफल रहा और लक्ष्य के अनुरूप जिले में 84 प्रतिशत बच्चों को कार्यक्रम का लाभ मिल सका। इस संबंध में जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया, राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से जिले को 2,90,000 बच्चों को पोलियो की खुराक देने का लक्ष्य दिया गया था। जिसमें इस चरण में 2,44,484 बच्चों को कार्यक्रम का लाभ दिया जा सका।

शत प्रतिशत टीकाकरण ही पहला लक्ष्य
जिला स्वास्थ्य विभाग पल्स पोलियो कार्यक्रम को लेकर पूरी तरह सतर्क था। कार्यक्रम की सफलता को लेकर प्रखंडवार माइक्रो प्लान, कम्युनिकेशन प्लान और सुपरविजन प्लान बनाकर अभियान में शामिल होने वाले कुल 1721 दो सदस्यीय टीम, जिसमें 620 डोर-टू-डोर टीम, 113 ट्रांसिट टीम, 12 मोबाइल टीम तथा 12 एक सदस्यीय टीम को प्रशिक्षण दिया गया था। इन सभी टीम की देख रेख के लिए 22 पर्यवेक्षक भी नियुक्त किए गए थे। साथ ही, सार्वजनिक स्थलों जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड एवं चौक चौराहों पर से गुजरने वाले बच्चों तक जिंदगी की दो बूंद पहुंचे इसके लिये सभी ट्रांजिट टीम को निर्देश दिये गए थे। वहीं, इस अभियान की सफलता के लिये आईसीडीएस विभाग से भी समन्वय स्थापित किया गया था। जिससे जिन के बच्चे का जन्म इस वर्ष के अंदर हुआ है उनको आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से पोलियो ड्राप पिलाना सुनिश्चित किया गया।
पिछली बार से अधिक घरों को किया गया है कवर
डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया, पिछले वर्ष की तुलना में इस बार लगभग 1200 से अधिक घरों को कवर किया गया है। उसके बावजूद कई लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकी। इसका मुख्य कारण घरों का बंद रहना था। उन्होंने बताया, लॉकडाउन की शुरुआत में स्कूल व अन्य शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया गया था। साथ ही, संक्रमण के खतरे से बचने के लिये दूसरे जिलों व बाहरी राज्यों के लोगों ने अपने-अपने बच्चों को अपने निवास स्थान पर भेज दिया। ताकि, उन्हें संक्रमण से बचाया जा सके। जिससे वो बच्चे पल्स पोलियो कार्यक्रम का लाभ लेने से वंचित रह गये। लेकिन, आगामी चरण में लक्ष्य को हर हाल में पूरा किया जायेगा।

 

 


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