
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सिद्धांत संकल्प और विकल्प विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार
आरा :- वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग क़े तत्वावधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सिद्धांत संकल्प और विकल्प विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब गोष्ठी में कुलपति प्रो राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण इस बात को ध्यान में रखकर किया गया है कि 21वीं सदी में भारत को किस प्रकार की शिक्षा चाहिए। 21वीं सदी में विकास के 17 सतत लक्ष्य में से चौथा लक्ष्य शिक्षा का विकास है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा संकल्प भारत एक ऐसी शिक्षा प्रणाली के मार्ग पर अग्रसर है। जिसमें राज्य और केंद्र दोनों समान रूप से भागीदार है। हर युवा जो शिक्षा प्राप्त कर रहा है, उसे पहचान कर उसका सर्वांगीण विकास हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बुनियादी साक्षरता के संकल्प से शुरुआत की गई है। प्रो प्रसाद ने कहा कि इसमें सबसे बड़ी सैद्धांतिक वाक्य है कि भविष्य की शिक्षा प्रणाली का विकास करना है, जिसमें एक साथ विज्ञान और कला विषय का ज्ञान अर्जन करने का अवसर युवाओं को प्रदान किया जाए। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को रटअंत विद्या से मुक्ति मिलेगी। उन्हें ज्ञानेंद्र के माध्यम से भावनात्मक क्षमता का विकास करना है। बाहर से आए आयातित संस्कृति से हमारी सदियों पुरानी सभ्यता का संघात हो रहा है। हमारा प्रयास है कि नई शिक्षा नीति से हमारे शिक्षा मूल्य संस्कारित हो।
मुख्य अतिथि अटल बिहारी बाजपेई विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति प्रो. ए॰डी॰एन॰बाजपेयी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ग्रॉस इनरोलमेंट की संख्या बढ़ाने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य है कि शिक्षा के विभिन्न नियामक संस्थाओं से बंधन मुक्त कर एक ही शिक्षा आयोग बने। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। कहा कि इस शिक्षा नीति में शिक्षा प्राप्ति काल से रोजगार व स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं। हमारे सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों से विद्यार्थी अवगत हो पाएंगे।
मुख्य वक्ता पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आर॰एन॰ यादव ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषाई विवाद को समाप्त किया गया है। इस शिक्षा नीति को लचीला बनाया गया है। इससे छात्रों को समय की बर्बादी नहीं होगा। शोध के गुणवत्ता के सुधार के उपाय किए गए हैं। साथ ही विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालय को स्वायत्तता देने पर बल दिया गया है। जिससे प्रतिस्पर्धा के आधार पर शिक्षा में गुणात्मक सुधार होगा।
विशिष्ट वक्ता अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो के॰के॰सिंह ने विषय के आधार वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि नई शिक्षा के कई आयाम है। यह पूर्णरूपेण लागू हो गया तो शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। उन्होंने कहा कि जिस देश में शिक्षा के प्रति रूचि नहीं होगी। उस देश का भौतिक विकास तो होगा किंतु मानवीय विकास नहीं होगा। शिक्षा नीति किसी देश के विकास का प्रतिबिंब होता है।
समन्वयक डॉ शैलेंद्र मणि त्रिपाठी पत्रकारिता एव जनसंचार समूह मगध विश्वविद्यालय ने अपना विचार रखते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद देश को संस्कारित युवा के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा। इसमें गोष्ठी में प्रो एमएन अंजुम, प्रो जावेद अशरफ, प्रो बीआर यादव, प्रो अंजनी कुमार सिंह, डॉ के के मिश्र, प्रो जयनंदन सिंह, डॉ विजय लक्ष्मी, राज कुमार, श्रुति मेहता, रेमन गोस्वामी, आशा सिंह, पुष्पा द्विवेदी, डॉ वीरेंद्र कुमार, डॉ पार्थ प्रीतम दास, डॉ मीनाक्षी, सुबोध कुमार, तकनीकी सहयोग के साथ डॉ संजय कुमार व वीकेएसयू आरा व एमयू बोधगया सहित देशभर के शिक्षक, शोधार्थी जुड़े रहे। शिक्षा शास्त्र विभाग के प्राचार्य प्रो शैलेंद्र कुमार ओझा ने अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत तथा सीसीडीसी प्रो हीरा प्रसाद सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।