वर्तमान समय में डॉ. अम्बेडकर के सपनों का भारत की स्तिथि


संदीप कुमार, शोधार्थी ( ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा )

एटीएन सिटी डेस्क:-हम सभी 21वीं सदी के भारत में हैं जहां प्राचीन भारत की तुलना में वर्तमान समय में अनेकों बदलाव हुए है. लेकिन आज हमारी बात वर्तमान समय में डॉ. अम्बेडकर के सपनों के भारत की स्तिथि क्या है ? उनमें क्या बदलाव आए है ? सामाजिक धरातल पर डॉ. अम्बेडकर के सपनों के भारत को लेकर तथाकथित भारतीय सभ्य समाज और सत्ताधारी पार्टियों व राजनीतिक दलों का क्या योगदान रहा है? इन सभी विषयों पर बात करने की कोशिश करेगें।
जब हम बाल्यावस्था में थे और स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए दाखिला हुआ तो हमलोगों को चौथी या पांचवी में पढ़ाई के दौरान पहली बार डॉ. अम्बेडकर को पढ़ने का मौका मिला जब हम डॉ. अम्बेडकर को इतना ही जानते थे कि डॉ. अम्बेडकर भारतीय संविधान के निर्माता थे जिन्होने दलित-गरीब परिवार में जन्म लिया और बहुत ही संकट से उन्होंने अपनी पढ़ाई की थी। उस समय समाज के लोगों व शिक्षकों द्वारा भी लगभग इतना ही बताया जाता था कि अम्बेडकर संविधान निर्माता थे और गरीब-दलितों के मसीहा थे.
यही बात एक लंबे समय तक हम सभी रट्टा लगाए रखते थे तो डॉ. अम्बेडकर के प्रति हमारी यही धारणा बन गई जो एक सोची-समझी साजिश के तहत सचेत तरीके से शोषित, उत्पीड़ित, गरीब-दलितों व देश के आम अवाम के बीच डॉ. अम्बेडकर के बारे में इतना ही बताया गया जिससे काम चल जाए. क्योंकी उनको डर था कि दूसरा डॉ. अम्बेडकर न खड़ा हो जाएं और जाति विहीन, शोषण और भेदभाव से मुक्त समता मूलक समाज निर्माण की बात न करने लगें. इसी भय के कारण सचेत तरीके से हर साल की तरह हर बार डॉ. अम्बेडकर की जयंती पर बहुसंख्यक हमारे शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों के नेताओं के द्वारा रटंत विद्या की तरह डॉ. अम्बेडकर को संविधान निर्माता व दलितों के मसीहा के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
हमारे समाज की बहुसंख्यक आबादी अम्बेडकर को सचेत तरीके से सीमित दायरे में ही बांधकर रखने की कोशिस करती है. मैंने देखा की जैसे-जैसे हमारी चेतना का विकास हुआ डॉ. अम्बेडकर को पढ़ने और समझने का मौका मिला तो हमने पाया की अम्बेडकर विश्वव्यापी थे। खैर वर्तमान समय में डॉ. अम्बेडकर के बतायें रास्तों और उनके विचारों पर चलने का प्रयास कर उनके विचारों और संघर्षों को जन-जन तक पहुचाने का काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी नहीं छोड़ा जा रहा है. उनको कोई न कोई बहाना खोजकर जेलों में ठूस दिया जा रहा है. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर को आप जितना जानने की कोशिश करते हैं, उनकी महानता, उनके द्वारा देश के हर वर्ग के लिए किए गए काम को जानकर आप हैरत में पड़ते जाते हैं.
डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय महापुरुषों में अकेले ऐसी विभूति हैं, जिन्हें हर पार्टी अपने नारों में जगह देती है. इसकी वजह साफ है. समाज का बहुसंख्यक तबका, जिसमें दलित और पिछड़े शामिल हैं जो अंबेडकर को अपना नायक मानता है. इसके अलावा जो भी प्रगतिशील विचार के लोग हैं, जो भी संविधान को मानने वाले लोग हैं, वे स्वाभाविक तौर पर अंबेडकर के निकट दिखते हैं. यह अंबेडकर की दूरदृष्टि थी कि जिन मुद्दों को भारतीय राजनीति में जगह पाने में दशकों लगे, अंबेडकर उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के समय ही प्रमुखता से उठा रहे थे.
संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के तौर पर संविधान सभा में वाद-विवाद को समाप्‍त करते हुए बाबा साहेब ने कहा था कि ’26 जनवरी, 1950 को हम अंतर्विरोधों के जीवन में प्रवेश करेंगे. राजनीति में समानता होगी तथा सामाजिक और आर्थिक जीवन में असमानता होगी. राजनीति में हम ‘एक व्‍यक्‍ति एक मत’ और ‘एक मत एक आदर्श’ के सिद्धांत को मान्‍यता देंगे. हमारी सामाजिक और आर्थिक संरचना के कारण हम हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में एक व्यक्ति एक आदर्श के सिद्धांत को नकारेंगे. कब तक हम इन अंतर्विरोधों का जीवन जिएंगे? कब तक हम हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे? अगर लंबे समय तक ऐसा किया गया तो हम अपने राजनैतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल देंगे. हमें जल्‍द से जल्‍द इस अंतर्विरोध को समाप्‍त करना चाहिए वरना असमानता से पीड़ित लोग उस राजनैतिक लोकतंत्र की संरचना को ध्‍वस्‍त कर देंगे जिसे सभा ने बड़ी कठिनाई से तैयार किया है.
डॉ. अंबेडकर का सपना एक ऐसे समाज का था जो समानता और भाईचारे पर टिका हो, जहां सबके लिए समान अवसर हों, जहां सबको आर्थिक सुरक्षा हो, जहां कोई जाति या धर्म के आधार पर बड़ा-छोटा, पवित्र या अछूत न हो. ऐसा नहीं है कि वर्तमान समय में परिस्थितियां बदली नहीं हैं, लेकिन अंबेडकर की कल्पना का भारत अभी भी बहुत दूर दिखाई देता है.
भारतीय संविधान की आत्मा है बराबरी और इंसाफ. लेकिन हम सभी एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहाँ पर वर्तमान समय में भारत के अल्पसंख्यक और दलित सबसे अधिक असुरक्षित महसूस कर रहे है. भारत के संविधान की बुनियादी प्रतिज्ञा में सारे अधिकारों की हिफाजत और उन्हें मुल्क पर बराबरी का हक देने की है. जबकि उनके भीतर की इस असुरक्षा और हिफाजत की बात करने वालों को देशद्रोही का टैग लगा दिया जा रहा है. अंबेडकर के सपनों का भारत तो वह था जहां दलित और अल्पसंख्यक सब समान रूप से सुरक्षित होते. फिर वे कौन लोग हैं जो बाबा साहेब के सपनों का भारत बनाने का नारा लगा रहे हैं?
पिछले सालों में दलितों पर हमलों की तमाम गंभीर घटनाएं हुईं. मरी हुई या जिंदा गाय के बहाने दलितों को प्रताड़ित करने का सिलसिला यहां तक पहुंचा कि गुजरात के दलितों ने जिला मुख्यालय के सामने मरे हुए पशुओं के ढेर लगा दिए और मरे हुए जानवर उठाने से इनकार कर दिया. उसी दौरान यह भी सवाल पूछा गया कि क्या अंबेडकर होते तो आज क्या करते? क्या दलितों के नारकीय जीवन के लिए संघर्ष करने वाले अंबेडकर ने कभी ऐसे भारत की कल्पना की थी?
अंबेडकर जिस भारत का सपना देख रहे थे, वह समानता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के उच्च आदर्शों पर आधारित एक ऐसा देश था, जहां दलित, स्त्रियां, पिछड़े, वंचित, मजदूर, किसान, आदिवासी सब सुरक्षित रहते और सबके लिए समान अवसर होता. संविधान आज भी वही है, लेकिन अंबेडकर की वह आशंका अपने मूर्तरूप में सामने है, जहां वे कह रहे थे कि ‘हमारा संविधान कैसा है यह इस पर निर्भर करता है कि इसे लागू करने वाले कैसे होंगे?’
अंबेडकर आधुनिक भारत के अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने दलितों के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया. इस क्रम में उन्होंने हिंदू धर्म और उसमें व्याप्त संस्थानिक अमानवीयता की धज्जियां उड़ाकर रख दीं. सामाजिक न्याय के पक्षधर अंबेडकर हमेशा धर्म और जातीय जकड़बंदी से मुक्त होने को छटपटाते रहे. उन्होंने चेताया था कि भारत अगर हिंदू राष्ट्र बना तो यह तबाही लाने वाला होगा. आज हिंदू राष्ट्र के पैरोकारों द्वारा भी अंबेडकर के नाम का नारा लगाना काफी दिलचस्प है.
ऐसे समय में जब बोलने, लिखने, पढ़ने पर पहरा है तो हम सभी जो भारतीय सभ्य समाज को भयमुक्त, समतामूलक और चौमुखी प्रगति पंसद आम-अवाम, तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओ, नेताओं को भारतीय संविधान के मूल आत्मा को बचाने और डॉ. अम्बेडकर के सपनों के भारत का निर्माण हेतू आगे बढ़ने की आवश्यकता है. वर्तमान समय में केवल अम्बेडकर की जयंती के मौके पर उनकी मूर्तियों पर माल्यापर्ण कर देने और बढ़ी- बढ़ी बाते करने से नहीं होगा जबकि यही अधिक होता है बल्कि निस्वार्थ भाव से धरातल पर काम करने की जरुरत हैं नही तो यह डॉ. अम्बेडकर के सपनों के साथ अन्याय होगा. आने वाली पीढ़ी हमसे पूछेगी की आप कहाँ थे और क्या कर रहे थे.


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